कुदरत का कहर भी जरूरी था साहब हर कोई खुद को खुदा समझ रहा था।
जो कहते थे,मरने तक की फुरसत नहीं है वो आज मरने के डर से फुरसत में बेठे हैं।
माटी का संसार है खेल सके तो खेल।
बाजी रब के हाथ है पूरा साईंस फेल ।।
मशरूफ थे सारे अपनी जिंदगी की उलझनों में,जरा सी जमीन क्या खिसकी सबको ईश्वर याद आ गया ।।
ऐसा भी आएगा वक्त पता नहीं था,
इंसान डरेगा इंसान से ही पता नहीं था capacitynewspaper@gmail.com